
फ़िलिस्तीन के इन्हीं मजबूर और मज़लूम लोगों का दु:ख-दर्द बांटने अमन का एक कारवां राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की समाधि राजघाट से ग़ज़ा के लिए रवाना हुआ. ग़ज़ा रवाना होने से पहले 60 लोगों ने राजघाट पर एक बैठक की, जिसमें अखिल भारतीय कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह और पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं सांसद मणि शंकर अय्यर ने भी शिरकत की. इन दोनों नेताओं ने इस कार्यक्रम में न स़िर्फ शिरकत की, बल्कि कारवां के प्रति सहानुभूति और समर्थन की घोषणा भी की. दिग्विजय सिंह ने कहा कि भारत हमेशा से फ़िलिस्तीन के स्वतंत्रता आंदोलन का समर्थक रहा है और आज भी. लेकिन पूर्व केंद्रीय मंत्री मणि शंकर अय्यर ने जो कहा, वह चौंकाने वाला है. वह शुरुआत से ही फिलिस्तीनी आंदोलन के समर्थक रहे हैं. उन्होंने कहा कि भारत हमेशा फ़िलिस्तीन का समर्थन करता आया है, लेकिन आज स्थिति काफ़ी अलग है और नीतियों में भी काफ़ी परिवर्तन आया है. ग़ौर करने वाली बात यह है कि देश के सत्तारूढ़ दल के नेता अगर यह बात कह रहे हैं तो इसमें शक़ की कोई गुंजाइश नहीं बचती है. मणि शंकर अय्यर की सा़फगोई के लिए उनकी तारी़फ होनी चाहिए, क्योंकि सरकार की मजबूरियों के बीच उन्होंने कहा कि हम सबको लाचार फ़िलिस्तीनियों को आज़ादी और न्याय दिलाने के लिए क़दम से क़दम मिलाकर उनका समर्थन करना चाहिए.
भारत से अमन का पैग़ाम लेकर एक कारवां इज़रायल पहुंचने वाला है. यह फिलिस्तीनियों के दु:ख-दर्द को बांटने और शांति का पैग़ाम लेकर वहां जा रहा है. इसमें देश की कई जानी-मानी हस्तियां शामिल हैं. यह कारवां ज़मीन के रास्ते पाकिस्तान और ईरान होते हुए इज़रायल पहुंच रहा है. डर इस बात का है कि अमन के इस कारवां का हश्र भी कहीं फ्रीडम फ्लोटिला की तरह न हो. भारत फिलिस्तीन का हिमायती रहा है, लेकिन अमन के इस कारवां को शुरुआत से ही कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा है.दुनिया भर की सरकारों की अपनी मजबूरी हो सकती है, लेकिन इस कारवां को अलग-अलग देशों की जनता और संगठनों का समर्थन ज़रूर हासिल है. फ़िलिस्तीन समर्थक संगठन एशियन पीपल्ज़ सोलीडेरिटी फॉर पिल्सटाइन के इस कारवां में भारत के 60 सदस्यों के अलावा पाकिस्तान, इंडोनेशिया, मलेशिया, जापान, अफ़ग़ानिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल, ईरान, इराक, शाम, ओमान, तुर्की, लेबनान और मिस्र से लगभग 500 लोग शामिल हुए. इस अमन कारवां ने ग़ज़ा में दाख़िल होने के लिए 27 दिसंबर की तारीख निर्धारित की है, क्योंकि इसी दिन इज़रायल द्वारा ग़ज़ा की घेराबंदी के तीन साल पूरे हो जाएंगे. अमन कारवां में बुद्धिजीवी, फिल्म निर्माता, अभिनेता, पत्रकार, मानवाधिकार कार्यकर्ता और अन्य क्षेत्रों से जुड़े लोग शामिल हैं. कारवां को एशिया के सैकड़ों संगठनों और दलों का समर्थन प्राप्त है. अकेले भारत से ही लगभग 80 संगठनों ने इस कारवां के समर्थन की घोषणा की, जिनमें समाजसेवी संस्थाएं, उदारवादी संगठन, धार्मिक संगठन, विद्यार्थी, पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता आदि शामिल हैं. इनमें से कुछ संगठनों के प्रतिनिधि कारवां के साथ गए, जबकि कुछ ने अपने समर्थन की घोषणा की. नागपुर से सामाजिक कार्यकर्ता सुरेश खैरनार, मैगसेसे अवार्ड से सम्मानित संदीप पांडेय, पत्रकार अजीत साही और मिली गज़ेट के प्रधान संपादक डॉक्टर ज़फ़र इल इस्लाम ख़ां जैसे लोग अमन कारवां में शरीक़ हुए. कारवां में पूरे देश के हर वर्ग के प्रतिनिधित्व की सफल कोशिश की गई. इसकी एक ख़ास बात यह भी है कि भारत समेत सभी एशियाई देशों द्वारा फ़िलिस्तीन से सहानुभूति प्रकट होने के बावजूद कोई कारवां आज तक इससे पहले नहीं गया. यूरोप से बड़े-बड़े कारवां गए और जा रहे हैं. तुर्की से इस साल फ्रीडम फ्लोेटिला नामक एक कारवां ग़ज़ा के लिए गया था, जिसमें अनाज, दवाएं और अन्य आवश्यक सामग्री थी और दुनिया भर के लगभग 300 लोग शामिल थे. यह ग़ज़ा जाना चाहता था, लेकिन बीच रास्ते में समुद्र में इस पर इज़रायली कमांडोज ने हमला कर दिया था, जिससे9 स्वयंसेवी मारे गए और 50 से अधिक घायल हो गए थे. बाक़ी लोगों को इज़रायली सिपाहियों ने गिरफ्तार कर लिया और इस जहाज़ को सामान समेत उठाकर ले गए. हालांकि बाद में वह जहाज़ इज़रायल ने आज़ाद कर दिया था. अब यह जहाज़ मरम्मत के बाद 26 दिसंबर को मिस्र की सीमा पर एक बड़े जलसे के बाद दोबारा ग़ज़ा रवाना किया जाएगा.
एशिया से ग़ज़ा रवाना होने वाले अमन कारवां को 2 दिसंबर को वाघा सीमा पैदल पार करके पाकिस्तान जाना था, जहां लाहौर पहुंच कर करांची और कोयटा होते हुए ईरान, तुर्की, सीरिया, जार्डन, लेबनान और फिर मिस्र के रास्ते ग़ज़ा में दाख़िल होने का कार्यक्रम था, लेकिन अमन कारवां को पहला झटका उस समय लगा, जब सुरक्षा को ख़तरा बताकर पाकिस्तान ने भारतीय अमन कारवां के सदस्यों को वीज़ा देने से इंकार कर दिया. बाद में पाकिस्तान ने स़िर्फ लाहौर तक का वीज़ा जारी किया, वह भी 60 में से स़िर्फ 29 सदस्यों को. बाक़ी सदस्यों का वीज़ा पाकिस्तान उच्चायोग ने बिना किसी ठोस कारणों के रद्द कर दिया. अब सवाल यह है कि पाकिस्तान ने ऐसा क्यों किया. क्या पाकिस्तान ने अमेरिका और इजरायल के दबाव में आकर ऐसा किया या फिर उसे सचमुच ऐसा लगता है कि कारवां में शामिल लोग उसकी सुरक्षा के लिए खतरा हैं. पाकिस्तान के इस रवैये की वजह वहां के अधिकारी ही बता सकते हैं. हालांकि पाकिस्तान उच्चायोग शुरू से ही अमन कारवां के सदस्यों को आश्वासन देता रहा है कि उसकी सरकार कारवां का समर्थन करती है और अगर कारवां के सदस्य रात के 12 बजे भी आएंगे तो भी उन्हें वीजा जारी कर दिए जाएंगे. इसके बावजूद एक दिसंबर की शाम को कारवां के सदस्यों को बुलाकर पाकिस्तानी उच्चायोग ने कहा कि उसकी सरकार अमन कारवां के सदस्यों को सुरक्षा प्रदान नहीं कर सकती. पाकिस्तानी सरकार का यह रवैया संदेह पैदा करता है. ये लोग शांति का संदेश लेकर फिलिस्तीनियों की मदद करने ग़ज़ा जा रहे हैं, अब कोई सरकार ऐसे लोगों को सुरक्षा देने से मना कर दे तो इसे क्या माना जाए. इसके अलावा पाकिस्तानी उच्चायोग में कारवां के सदस्यों से जो सवाल किए गए, उनसे भी पाकिस्तान की नीयत का अंदाज़ा लगाया जा सकता है. पाकिस्तानी उच्चायोग द्वारा पूछे गए विभिन्न सवालों में से एक सवाल यह भी था कि क्या पाकिस्तानी पत्रकार तुलाल भी इस कारवां के साथ ग़ज़ा जाएंगे. पाकिस्तान की इजरायल नवाज़ी इस सवाल के बाद पूरी तरह खुलकर सामने आ गई, क्योंकि इजरायल की सरकार ने यह पहले ही ऐलान कर दिया था कि हर व्यक्ति को ग़ज़ा जाने की अनुमति नहीं है. सवाल यह है कि तुलाल को इजरायल ग़ज़ा में दाख़िल होने की अनुमति नहीं देता है तो कोई बात नहीं, लेकिन पाकिस्तान के सामने तुलाल को रोकने की क्या मजबूरी थी.
ग़ज़ा जाने वाले कारवां को दूसरा झटका उस समय लगा, जब उसके 29 सदस्य वाघा सीमा पर पहुंचे. वहां उन्हें पता चला कि वाघा के अधिकारियों के पास ऐसी कोई सूचना नहीं है कि किसी अमन कारवां को पैदल पाकिस्तान जाने की अनुमति दी जाए. इस मौक़े पर कारवां के भारतीय और पाकिस्तानी सदस्यों ने सीमा के दोनों ओर विरोध प्रदर्शन किया. इसके बाद कारवां के सदस्य वापस आने लगे तो पंजाब से दिल्ली आते हुए रात को लगभग 9 बजे सूचना मिली कि वे कल वाघा सीमा पार कर सकते हैं. इस घटना के बाद भारत सरकार का वह चेहरा सामने आ जाता है, जिसका ज़िक्र 2 दिसंबर को महात्मा गांधी की समाधि पर मणि शंकर अय्यर ने किया था कि भारत हमेशा फ़िलिस्तीन का समर्थन करता आया है. लेकिन आज की परिस्थितियां काफ़ी भिन्न हैं और नीतियों में काफ़ी बदलाव आ गया है. यह फ़िलिस्तीन के प्रति भारत सरकार की नीतियों की देन है, वरना अगर कारवां द्वारा डेढ़ महीने पहले दिए गए आवेदन को ख़ारिज़ किया जा चुका था तो इसकी सूचना क्यों नहीं भेजी गई. आख़िरकार ग़ज़ा जाने वाले एशियाई अमन कारवां के 29 भारतीय सदस्यों ने अगले दिन पैदल वाघा सरहद पार की, जहां पाकिस्तान के दर्जनों लोगों ने उनका भव्य स्वागत किया. वाघा सीमा पर ही एक भव्य समारोह का आयोजन किया गया, जिसमें भारतीय कारवां के सदस्यों ने फ़िलिस्तीनी परचम पाकिस्तानी सदस्यों के सुपुर्द किया. इसके बाद सभी सदस्य लाहौर चले गए, जहां 2 दिन रुकने के बाद वे अपने वतन वापस आ गए. फिर यहां से वे हवाई जहाज़ द्वारा ईरान के लिए रवाना हो गए.
ग़ज़ा जाने वाले एशियाई अमन कारवां की रवानगी से पूर्व इन देशों में फ़िलिस्तीनियों के दर्द और उनकी कठिनाइयों को उजागर करने के लिए फ़िल्म, सेमिनार, धरने और जुलूसों का भी आयोजन किया गया. यह कारवां जिन शहरों और देशों से गुज़रा, वहां बड़े-बड़े जलसे और आमसभाएं की गईं. ग़ज़ा से वापस आकर कारवां के सदस्य भारत के 15 बड़े शहरों में कांफ्रेंस करेंगे, ताकि भारत सरकार और जनता फ़िलिस्तीन का उसी तरह समर्थन करे, जिस तरह महात्मा गांधी, पंडित जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी ने किया था, क्योंकि दुनिया भर में जहां कहीं भी स्वतंत्रता आंदोलन हुए, उन्हें भारत ने समर्थन दिया. महात्मा गांधी कहते थे कि फ़िलिस्तीन उसी तरह फ़िलिस्तीनियों का है, जिस तरह तुर्की तुर्कियों का है, ईरान ईरानियों का और हिंदुस्तान हिंदुस्तानियों का. जिस तरह भारत और पाकिस्तान में इस कारवां को जनसमर्थन मिला, जिस तरह अधिकारियों ने मुश्किलें खड़ी करने की कोशिश की, उससे सा़फ ज़ाहिर है कि कारवां को लेकर भारत, पाकिस्तान और इजरायल की सरकार चिंतित है. अब सबकी निगाहें अमन कारवां पर टिकी हैं. क्या यह ग़ज़ा पहुंच पाएगा, क्या इजरायल इसे गज़ा में घुसने देगा या फिर इस कारवां को भी फ्रीडम फ्लोटिला की तरह रोका जाएगा. अगर इस कारवां को रोका जाता है तो भारत सरकार के लिए मुश्किलें बढ़ जाएंगी और अगर कारवां ग़ज़ा के लोगों तक भारत और एशिया की जनता का पैग़ाम पहुंचा पाता है तो भारत और फिलिस्तीन की जनता के बीच दोस्ती और भाईचारे के इतिहास में यह मील का पत्थर साबित होगा.
No comments:
Post a Comment